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खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरकरार रखनी है तो मिट्टी में ही मिला दें फसल अवशेष

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  •  हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र दामला द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन बहादुरपुर में किसान जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

संदीप कम्बोज। यमुनानगर इनसाइडर
यमुनानगर।
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र दामला यमुनानगर द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर किसान जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन गांव बहादुरपुर में किया गया। इस जागरूकता कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जन-जन में पराली न जलाने व उसका समुचित उपयोग करना था। (Farmer-awareness-program-on-crop-residue-management-organizedby-Agricultural-Science-Center-Damla-in-Bahadurpur) कृषि विज्ञान केन्द्र के संयोजक डॉ. संदीप रावल ने आह््वान करते हुए कहा कि मृदा की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने के लिए हमें सभी फसलों के अवशेषों को जलाने की बजाए मिट्टी में ही मिला देना चाहिए, जिससे कि हमारी धरती की कार्बन तत्व में बढ़ोतरी हो व मिट्टी बंजर होने से बच सके तथा इन फसल अवशेषों के सड़ने-गलने के उपरांत उनमें उपस्थित पोषक तत्व की पूर्ति अगली फसल के लिए होती रहे और रासायनिक उर्वरकों की खपत में कमी लाई जा सके। उन्होंने बताया कि खेत में फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिससे कई लाभकारी सूक्ष्मजीव, मित्र कीट, मेंढक और केंचुए जलकर नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा वातावरण में हानिकारक गैसें जैसे कार्बन मोनोआॅक्साइड, कार्बन डाइआॅक्साइड और नाइट्रस आॅक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। जिससे पर्यावरण में रहने वाले जीवों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे आंखों में जलन, श्वास लेने में घुटन, एलर्जी और श्वास से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा मौसम परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती है। फसल अवशेष जलाने से मृदा की ऊपरी सतह से आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर भी जलकर नष्ट हो जाते है। इन पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए किसानों को अत्यधिक खर्च का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें मिट्टी में मिलाना या अन्य तरीकों से उपयोग करना अधिक लाभकारी होगा, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है और वातावरण भी स्वच्छ रहता है। फसल अवशेषों के जलाने से निकलने वाला धुआं हवा को दूषित कर मानव स्वास्थ्य, भूमि और पर्यावरण स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। इसके परिणामस्वरूप जल 10 क्विंटल फसल अवशेष जलाने से मृदा से 5.5 किला नाइट्रोजन, 2.3 किलो फास्फोरस, 35 किलो पोटाश और 1.2 किलो सल्फर नष्ट हो जाते हैं। पराली जमीन में मिलाने से लगभग 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 7 किलोग्राम सल्फर, 60-100 किलोग्राम पोटाश और 1600 किलोग्राम आॅर्गेनिक कार्बन प्रति एकड़ तक जमीन को प्राप्त हो जाते हैं।

किसानों को सब्जि उत्पादन की दी जानकारी
कृषि अभियंता डॉ. कपिल सिंगला ने फसल अवशेष प्रबंधन के महत्व और लाभ पर प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों को फसल अवशेषों को खेत की मिट्टी में मिलाने, खाद बनाने और अन्य तरीकों से प्रबंधन करने के तरीके बताए। उन्होंने कहा कि इससे मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि, जल संरक्षण और फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। डॉ. सिंगला ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपयोगी मशीनों जैसे सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल ड्रिल मशीन, रिवर्सिबल एम.बी. प्लो, चिजलर, स्लेसर और मल्चर के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इन मशीनों का उपयोग करके किसान फसल अवशेषों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं और मिट्टी की उर्वरता बढ़ा सकते हैं। प्रशिक्षण सहायक डॉ. करण सिंह सैनी ने भोजन में सब्जियों का महत्व बताते हुए जैविक विधि से स्वास्थ्यवर्धक सब्जियां उत्पादित करने की सलाह दी। उन्होंने अवशेषों से कंपोस्ट तैयार कर उसे सब्जी उत्पादन में इस्तेमाल करने का भी महत्व बताया। उन्होंने बताया कि सब्जियों के उत्पादन के लिए कार्बनिक पदार्थ और सूक्ष्म पोषक तत्वों की अत्यधिक आवश्यकता होती है, जो फसल अवशेष में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इससे रासायनों का उपयोग कम किया जा सकता है और जैविक विधि से सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और सब्जियों की गुणवत्ता में सुधार व अपनी फसल की उत्पादकता बढ़ा सकें और अपनी आय में वृद्धि भी कर सकें। इस अवसर पर गांव के लगभग 150 प्रगतिशील किसान व महिला किसानों ने भाग लिया।

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