- तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सभागार
संदीप कम्बोज। यमुनानगर इनसाइडर
यमुनानगर। 47वें युवा महोत्सव में डीएवी गर्ल्स कॉलेज की छात्राओं ने सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक संस्कृत नाटक की प्रस्तुति दी। नाटक में स्त्री जीवन की वेदनाओं का मार्मिक मंचन किया गया। कलाकारों की उम्दा प्रस्तुति देखकर सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कॉलेज प्रिंसिपल डॉ मीनू जैन ने सभी कलाकारों का हौसला वर्द्धन किया। साथ ही कहा कि वाषिक पुरस्कार वितरण समारोह में विजेता प्रतिभागियों को सम्मानित किया जाएगा। डॉ नीता द्विवेदी, डॉ गुरशरण कौर व विकास वालिया ने युवा महोत्सव में कॉलेज को-ओडिनेटर की भूमिका अदा की।
सदियों से पुरूष प्रधान के हाथों में रही स्त्री की डोर
सुरेंद्र वर्मा द्वारा लिखित नाटक सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण का संस्कृत में अनुवादद किया गया। नाटक में दिखाया गया कि स्त्री सदा पराधीन रही है। उसके जीवन की डोर पुरूष प्रधान समाज के हाथों में रही है। पुरूष ने स्त्री का स्वार्थवश उपयोग किया है। नाटक में महाराजा ओक्काक व रानी शीलवती की कहानी का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि दोनों की शादी को पांच साल बीत जाने के बाद भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। महाराज में संतान उत्पादन क्षमता का सर्वदा अभाव था, जिसके बारे में उसने राजवैध को बताया था। समस्त चिकित्सकीय उपाय करने के बाद ही राजवैध ने उन्हें विवाह करने का सुझाव दिया कि जब कोई स्त्री आपसे संबंध निर्मित करेगी, तो रोग खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगा। ऐसा मानकर राजा ने निर्धन शीलवती से विवाह कर लिया। विवाह के पांच साल बाद भी जब राजा नि:संतान रहे, तो महामात्य, बलाधिकृत, राजपुरोहित नामक तीन प्रधान मंत्रियों ने अपने राज्य की परंपरा को आधार बनाकर रानी शीलवती को धर्मनटी बनाकर नियोजनिधि से उत्पत्ति चयन का अधिकार देने हेतु राजा को विवश कर दिया।
परंपरा को मानकर राजा ने विवश हो धर्मपत्नी को परपुरूष गमन का अधिकार दे दिया। रानी शीलावती ने स्वयंवर विधि से अपने पूर्व प्रेमी प्रतोष को उपपति के रूप में स्वीकार किया। वे दोनों पहले प्रेम संबंध में थे। निर्धन शीलवती ने विवाह के समय प्रतोष का चयन न करके धनी राजा का चयन किया था। जब भाग्यवश उसको प्रतोष, उपपति के रूप में प्राप्त हुआ, तो उसके साथ रात्री व्यतीत करती है। प्रात:काल जब महल में जाती है, तो बहुत प्रसन्नचित व रोमांचित होकर रात्री अनुभव को सभी को बताती है। रानी यह कहकर सभी को अंचभित कर देती है कि वह दोबारा पूर्व प्रेमी के पास जाएगी, क्योंकि उससे संबंध के उपरांत उसने गर्भनिरोधक औषधी खाई है। वह घोषणा करवाती है कि रानी शीलवती अगले सप्ताह फिर से उपपति का चयन करेगी। अब वह स्वयं को राजधर्म से मुक्त करके स्वेच्छानुसार आचरण करती है। नाटक से शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार से पुरूष अपने जीवन के सभी निर्णय स्वयं लेता है।, उसी प्रकार स्त्री को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए।
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